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fake news : फेक न्यूज की पहचान और उससे बचने के तरीके

people protesting inside building

Photo by Kayla Velasquez on Unsplash

फेक न्यूज क्या है?

फेक न्यूज, जिसे अक्सर झूठी या भ्रामक जानकारी के रूप में परिभाषित किया जाता है, समाज के विभिन्न हिस्सों में एक गंभीर समस्या के रूप में उभर चुकी है। फेक न्यूज का मकसद अक्सर जनता को गुमराह करना, सामाजिक असंतोष पैदा करना, या किसी विशेष विचारधारा या उद्देश्य को बढ़ावा देना होता है। इस प्रकार की नकली खबरें कई स्रोतों के माध्यम से फैलती हैं, जिनमें सोशल मीडिया, समाचार वेबसाइट, और विभिन्न मैसेजिंग प्लेटफार्म प्रमुख रूप से शामिल हैं।

सोशल मीडिया जैसे प्लेटफार्म्स पर, फेक न्यूज तेजी से और व्यापक रूप से फैल सकती है। लोग बिना सोचे-समझे ऐसी खबरों को आगे बढ़ा देते हैं, जिससे वे और अधिक लोगों तक पहुँचती हैं। फेक न्यूज अक्सर आकर्षक और सनसनीखेज हेडलाइन्स के माध्यम से प्रसारित की जाती है, जो तुरंत लोगों का ध्यान आकर्षित करती हैं। इसके अलावा, कुछ खबरें विशेष रूप से ऐसे होते हैं जिसमें आधे-अधूरे तथ्य या संदर्भहीन जानकारी का इस्तेमाल किया जाता है ताकि उन्हें सच्चा लग सके।

समाचार वेबसाइट्स पर भी नकली खबरों का प्रसार एक गंभीर चिंता का विषय है। इन प्लेटफार्म्स पर फेक न्यूज अक्सर प्रोपेगंडा, राजनीतिक एजेंडों या आर्थिक लाभ के उद्देश्यों के लिए प्रयोग की जाती है। यहां खबरों को अधिक विश्वसनीय दिखाने के लिए फर्जी स्रोत या संदर्भ प्रस्तुत किए जा सकते हैं। इन वेबसाइट्स का नेटवर्क इतना व्यापक हो सकता है कि यह अलग-अलग क्षेत्रों और समूहों में आसानी से फेल सकती हैं।

मैसेजिंग एप्स जैसे वॉट्सएप और टेलीग्राम भी फेक न्यूज के प्रसार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यहां खबरें तेजी से और निजी रूप में फैलती हैं, जिससे उनके सत्यापन की प्रक्रिया और भी कठिन हो जाती है। “फॉरवर्डेड” मैसेज में भेजी जाने वाली ऐसी खबरें प्रायः एक चैन रिएक्शन के रूप में प्रसारित होती हैं, जिससे उनके प्रभाव का दायरा बढ़ता जाता है।

फेक न्यूज की पहचान कैसे करें?

फेक न्यूज की पहचान करना आज के डिजिटल युग में अत्यंत आवश्यक हो चुका है। सबसे पहले, फेक न्यूज की पहचान संदिग्ध स्रोतों से की जा सकती है। कोई भी समाचार जो किसी अज्ञात या अशुद्ध वेबसाइट से आता है, वह संदेहास्पद हो सकता है। ऐसे वेबसाइट्स और सोशल मीडिया अकाउंट्स अक्सर भ्रामक समाचार फैलाने के लिए जाने जाते हैं।

दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि लेखकों या पोस्ट करने वालों की प्रामाणिकता जांचना भी आवश्यक है। जब किसी लेखक या कंटेंट क्रिएटर की साख स्थापित नहीं है, तो उसके द्वारा दिए गए तथ्यों पर भरोसा करना कठिन हो सकता है। अप्रामाणिक लेखकों और सूत्रों की पोस्ट किए गए सामग्रियों को साझा करने से पहले हमेशा सतर्क रहें।

अतिरंजित या अलार्मिंग हेडलाइन्स भी फेक न्यूज का एक स्पष्ट संकेत हो सकती हैं। ऐसी हेडलाइन्स अक्सर पाठकों का ध्यान आकर्षित करने के लिए बनाई जाती हैं और उनके पीछे का तथ्यात्मक आधार कमज़ोर हो सकता है। इसलिए, किसी भी समाचार की हेडलाइन के अलार्मिंग होने पर उसे क्लिक करने से पहले उसके विवरण को ध्यानपूर्वक पढ़ें और सुनिश्चित करें कि पूरा लेख विश्वसनीय और संतुलित जानकारी प्रदान कर रहा है।

तथ्यों की जांच एक और महत्वपूर्ण कदम है। संदिग्ध समाचार की व्यवस्था को सत्यापित करने के लिए प्रामाणिक तथ्य-जांच सेवाओं का सहारा लें। कई बार फेक न्यूज का खंडन सरल रीसर्च और सच्चे तथ्यों की पड़ताल से तुरंत किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, क्रॉस-रेफरेंसिंग और अन्य विश्वसनीय स्रोतों का निरीक्षण फेक न्यूज को दूर करने में सहायक हो सकता है।

अंत में, संदिग्ध पोस्ट का विश्लेषण करना भी अनिवार्य है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि पोस्ट नकली नहीं है, उसके स्रोत, प्रस्तुति और समीकरण की गहन जांच की जानी चाहिए। यदि कोई ज्ञात समाचार संगठन या स्रोत किसी विशेष खबर को कवर नहीं कर रहा है, तो उसकी सत्यता पर संदेह करना स्वाभाविक है।

फेक न्यूज से निपटने के लिए फेक फोटो और वीडियो की पहचान करना बेहद महत्वपूर्ण है, खासकर जब इनका प्रयोग तेजी से फैलने वाले गलत सूचनाओं में होता है। फोटो और वीडियो की सच्चाई की जांच के लिए कई तकनीकी टूल्स और प्रक्रियाएं हैं जिनका उपयोग कर एक सत्यापित जानकारी पाई जा सकती है।

फोटो का रिवर्स सर्च

फेक फोटो की पहचान करने का सबसे प्रचलित तरीका है रिवर्स इमेज सर्च। इस प्रक्रिया के द्वारा हम फोटो का स्रोत और इसके पहले कहां-कहां उपयोग हुआ है, इसका पता लगा सकते हैं। गूगल इमेज सर्च जैसे टूल्स में फोटो को अपलोड कर या उसके URL को कॉपी कर सर्च किया जाता है जिससे उस फोटो के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। जब फोटो कई जगहों पर विभिन्न प्रसंगों में प्रकट होती है, तो यह समझा जा सकता है कि फोटो का गलत इस्तेमाल हो सकता है।

वीडियो की मेटाडेटा जांच

वीडियो सामग्री की सटीकता के लिए मेटाडेटा की जांच की जा सकती है। इसके अंतर्गत वीडियो के निर्माण की तारीख, स्थान, कैमरा सेटिंग्स और अन्य तकनीकी उपायों की जानकारी प्राप्त करना शामिल होता है। फुटेज फॉरेंसिक और वीआईडी जैसी टूल्स अत्यधिक उपयोगी हैं जो वीडियो फाइल के असली निर्माण का समय और अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां प्रदान करती हैं।

स्पष्टता व समय की जांच

फेक न्यूज की पहचान करने के लिए फोटो और वीडियो की स्पष्टता और समय की जांच भी महत्वपूर्ण है। यदि फोटो या वीडियो में किसी घटना का स्पष्टता से वर्णन नहीं हो रहा है, या समय की जानकारी गड़बड़ है, तो वहां संदेह करना जायज है। फोटो और वीडियो की क्यूसी जांच करके हम समझ सकते हैं कि सामग्री वास्तविकता के साथ मेल खाती है या नहीं।

इन प्रक्रियाओं के माध्यम से फेक फोटो और वीडियो की पहचान कर, हम गलत सूचनाओं से बच सकते हैं और सही जानकारी को प्रोत्साहित करने में मदद कर सकते हैं।

पुरानी घटना की तस्वीर या वीडियो को नई घटना से जोड़कर फैलाने से कैसे बचें?

फेक न्यूज की पहचान करना और उनसे बचना आज के डिजिटल युग में अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है। फेक न्यूज के तहत अक्सर पुरानी तस्वीरें और वीडियो को नई घटनाओं के साथ जोड़कर प्रस्तुत किया जाता है। ऐसी स्थिति में लोगों को भ्रमित करने का प्रयास किया जाता है, जिससे समाज में गलत सूचना फैलती है और गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

पुरानी तस्वीरों और वीडियो को नई घटनाओं के साथ जोड़कर फेक न्यूज के रूप में प्रस्तुत किए जाने से बचने के लिए सबसे पहले हमें साझा किए गए सामग्री की तारीख की जांच करनी चाहिए। किसी भी तस्वीर या वीडियो को देखने के बाद उसका स्रोत और मूल तारीख की पुष्टि करने के लिए इंटरनेट का उपयोग करें। बहुत बार, इमेज रिवर्स सर्च तकनीक का उपयोग करके यह पता लगाया जा सकता है कि उक्त सामग्री पहली बार कब और कहां प्रदर्शित हुई थी।

फेक न्यूज की पहचान में दूसरी अहम बात यह है कि हमें किसी भी जानकारी पर सीधे विश्वास करने के बजाय उसके तथ्यों की दृढ़ता से परीक्षण करना चाहिए। विभिन्न प्रमाणित और भरोसेमंद स्रोतों से मिले तथ्यों और समाचारों की तुलना करना उचित रहता है। उदाहरण के तौर पर, मुख्यधारा के मीडिया आउटलेट्स, सरकारी वेबसाइट्स और अन्य प्रमाणित समाचार पोर्टलों का सहारा लिया जा सकता है।

इसके अलावा, अगर किसी घटना से संबंधित तस्वीर या वीडियो पर संदेह हो तो उसका प्रसार करने से पहले उसका विश्लेषण करें।

इस प्रकार पुरानी घटना की तस्वीरें या वीडियो को नई घटना से जोड़कर फैलाने से बचने के प्रयास करके हम फेक न्यूज के खतरे को कम कर सकते हैं, और एक जिम्मेदार डिजिटल नागरिक के रूप में समाज में सतर्कता बढ़ा सकते हैं।

फेक न्यूज के दुष्प्रभाव

फेक न्यूज की पहचान जितनी महत्वपूर्ण है, उतना ही आवश्यक है इसके दुष्प्रभावों को समझना। फेक न्यूज समाज के विभिन्न स्तरों पर व्यापक और गंभीर प्रभाव डाल सकती है। व्यक्तिगत स्तर पर, गलत सूचनाओं के प्रसार से व्यक्ति मानसिक तनाव, भ्रमित सोच, और गलत निर्णय लेने की स्थिति में पहुंच सकता है। इसके अतिरिक्त, फेक न्यूज की वजह से व्यक्तियों के बीच अविश्वास और नफरत की भावनाएं भी पनप सकती हैं, जो उनके आपसी संबंधों को कमजोर करती हैं।

सामाजिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो फेक न्यूज सामाज को विभाजित कर सकती है। जब ऐसी समाचार सामग्री विभिन्न समुदायों, धर्मों, या जातियों के बीच उन्माद फैलाती है, तो यह सामाजिक समरसता और शांति को खतरे में डाल सकती है। इसके फलस्वरूप समाज में हिंसा, उग्रवाद और असंतोष को प्रोत्साहन मिलता है। यह समस्या तब और गंभीर हो जाती है जब फेक न्यूज का इस्तेमाल किसी राजनीतिक एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए किया जाता है, जिससे जनमत को भ्रामक तरीके से प्रभावित किया जाता है।

राष्ट्रव्यापी स्तर पर फेक न्यूज के दुष्प्रभाव और भी गंभीर हो सकते हैं। यह मतदाताओं की सोच को भ्रमित कर चुनावों के परिणामों को प्रभावित कर सकती है, जो लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के ह्रास का कारण बनता है। गलत सूचनाओं के चलते सामाजिक और आर्थिक अस्थिरता भी उत्पन्न हो सकती है, जिससे देश की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा पर भी नकारात्मक असर पड़ता है।

फेक न्यूज की पहचान और उससे बचने के तरीके समझना अत्यंत आवश्यक है लेकिन साथ ही इसकी सामाजिक, राष्ट्रीय और व्यक्तिगत स्तर पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को पहचानना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। जागरूकता और सतर्कता के माध्यम से हम फेक न्यूज से होने वाले नुकसान को काफी हद तक नियंत्रित कर सकते हैं।

 

फेक न्यूज की वजह से हुए जानमाल का नुकसान

भारत में फेक न्यूज की वजह से जानमाल का नुकसान कई बार देखने को मिला है। डिजिटल युग में, सोशल मीडिया और व्हाट्सएप जैसे मैसेजिंग प्लेटफॉर्म्स के जरिए फेक न्यूज बहुत तेजी से फैलती है, जिसकी वजह से कई बार हिंसक घटनाएं हुईं हैं। अप्रैल 2017 में, झारखंड के रामगढ़ जिले में दो लोगों की मॉब लिंचिंग का मामला इसके गंभीर परिणामों का अद्यतन उदाहरण था। इस घटना में अफवाह फैली कि ये लोग बच्चों को अगवा कर रहे थे, और बिना किसी पुष्टि के भीड़ द्वारा उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट में यह देखा गया है कि 2017 से 2021 तक फेक न्यूज और अफवाहों की वजह से हिंसक घटनाओं में 200% तक की वृद्धि हुई है। महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और असम में ऐसी घटनाओं की तादाद सबसे ज्यादा रही है। 2018 में महाराष्ट्र के धुले जिले में पांच लोगों की मॉब लिंचिंग की घटना के पीछे भी फेक न्यूज का ही हाथ था, जिसमें अफवाह थी कि ये लोग मानव अंगों के तस्कर हैं।

अपर्णा कुमार, एक डिजिटल विश्लेषक, बताती हैं कि “फेक न्यूज की पहचान करना कई बार मुश्किल हो जाता है क्योंकि ये खबरें अक्सर संवेदनशील भावनाओं को भुनाने का प्रयास करती हैं।“ फेक न्यूज के कारण हुए आर्थिक नुकसान का भी आकलन किया गया है। एक अध्ययन के अनुसार, 2020 में देश की जीडीपी को $4 बिलियन से अधिक का नुकसान सिर्फ फेक न्यूज से संबंधित आर्थिक अस्थिरता से हुआ।

इन घटनाओं से स्पष्ट है कि फेक न्यूज सिर्फ कानूनी और सामाजिक मुद्दा नहीं है, बल्कि इससे मानव जीवन पर सीधा प्रभाव पड़ता है। फेक न्यूज की वजह से जानमाल का नुकसान न केवल निर्दोष जीवन का अंत करता है बल्कि समाज में अस्थिरता और भय का माहौल भी पैदा कर देता है। इसे देखते हुए, फेक न्यूज की पहचान और उससे बचने के उपायों पर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है।

झूठी खबरों से किसका फायदा होता है?

फेक न्यूज का प्रसार आज वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर गंभीर चिंताओं को जन्म दे रहा है। इसके सबसे बड़े लाभार्थियों में से एक राजनीतिक दल हैं। अनेक उदाहरणों से पता चला है कि चुनावी माहौल में राजनीतिक दल नियमित रूप से फेक न्यूज का सहारा लेते हैं, ताकि अपने प्रतिद्वंद्वियों को नीचा दिखा सकें और अपने समर्थकों को गुमराह कर सकें। चुनाव के दौरान फेक न्यूज का उद्देश्य जनमत को प्रभावित करना और समाज में ध्रुवीकरण पैदा करना होता है, जिससे वे स्वयं राजनीतिक लाभ उठा सकें।

इसके अतिरिक्त, कई व्यापारिक संगठन भी फेक न्यूज का उपयोग अपने व्यावसायिक उद्देश्यों को पाने के लिए करते हैं। कंपनियाँ प्रतिस्पर्धा को कमजोर करने या उपभोक्ताओं को गुमराह करने के लिए गलत सूचनाओं का प्रसार कर सकती हैं। इस प्रकार की गतिविधियाँ नकली उत्पादों की बिक्री को भी बढ़ावा देती हैं और उपभोक्ताओं को आर्थिक नुकसान पहुंचाती हैं।

समाज के विभिन्न समूहों द्वारा फैलाए गए इन झूठी खबरों का प्रभाव बड़े पैमाने पर देखा जाता है। कुछ मामलों में, गैर-जिम्मेदाराना पत्रकारिता और मीडिया संगठन भी फेक न्यूज के प्रसार में शामिल होते हैं। क्लिकबेट्स और सनसनीखेज हेडलाइंस के जरिए वे अपनी ऑनलाइन ट्रैफिक और विज्ञापन आय को बढ़ाने का प्रयास करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप जनता को भ्रामक सूचना मिलती है।

वहीं कुछ असामाजिक तत्व और कट्टरपंथी विचारधाराएँ भी फेक न्यूज का सहारा लेकर समाज में तनाव और अस्थिरता उत्पन्न करने की कोशिश करती हैं। इसका उद्देश्य जाति, धर्म या संप्रदाय के नाम पर समाज को बांटने का होता है, ताकि अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति की जा सके।

इस प्रकार, स्पष्ट रूप से राजनीतिक, व्यावसायिक और सामाजिक लाभ के लिए विभिन्न वर्ग फेक न्यूज का सहारा लेते हैं। इसके परिणामस्वरूप समाज में अविश्वास, भ्रम और आर्थिक नुकसान की स्थितियां उत्पन्न होती हैं, जिसे रोकने के लिए सावधानीपूर्वक और जागरूक रहने की आवश्यकता है।

फेक न्यूज से बचने के तरीके

फेक न्यूज के खतरों से बचाव के लिए सावधानी और जागरूकता अत्यंत महत्वपूर्ण है। फेक न्यूज की पहचान करने के लिए सबसे पहले उपयोगकर्ताओं को अपने सूचना स्रोतों को ध्यान से परखना चाहिए। सूचना के भलीभांति परीक्षण के लिए यह जरूरी है कि आप सब नवीनतम तरीकों का उपयोग करें जैसे तथ्य-जांच वेबसाइटों का सहारा लेना। यह वेबसाइटें आमतौर पर त्वरित और प्रभावशाली तरीके से तथ्य की सच्चाई की जांच करती हैं।

विश्वसनीय न्यूज स्रोत का चयन भी फेक न्यूज से बचने का महत्वपूर्ण तरीका है। अपने बैलेंस्ड कवरेज और उच्च पत्रकारिता मानकों के लिए पहचानी जाने वाली न्यूज़ एजेंसियां और मीडिया प्लेटफॉर्म को चुनें। एक प्रतिष्ठित स्रोत से आई खबरें आमतौर पर तथ्यात्मक और सटीक होती हैं।

इसके अतिरिक्त, सोशल मीडिया पर नजर रखने की आवश्यकता होती है, जहां फेक न्यूज की फ्रीक्वेंसी अधिक होती है। किसी भी समाचार को तुरंत साझा करने से पहले विश्वसनीयता जांचना और स्रोत को सत्यापित करना जरूरी है। हमारी दैनिक डिजिटल आदतों में थोड़ी सी सावधानी हमें फेक न्यूज के घातक प्रभावों से बचा सकती है।

आखिरकार, फेक न्यूज की चुनौती से निपटने का एक और तरीका शिक्षा और सतर्कता है। विभिन्न कार्यशालाओं, सेमिनारों और ऑनलाइन पाठ्यक्रमों के माध्यम से खुद को और अन्य को जागरूक करें। इनका उद्देश्य एक डिजिटल लिटेरेसी डेवलप करना है, जो हमें सूचना के सागर में तैरते समय सही और गलत का भेद बताये।

समाज में अधिक से अधिक डिजिटल शिक्षण और सही जानकारियों का प्रसार करके हम फेक न्यूज के बुरे प्रभावों को कम कर सकते हैं। याद रखें, किसी भी खबर की पुष्टि किए बिना उसे मान लेना फेक न्यूज को बढ़ावा दे सकता है।

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